बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा, जीडीपी कोई बाइबल, रामायण नहीं

गिरती जीडीपी को लेकर सोमवार को संसद में विपक्षी पार्टियों की ओर से काफ़ी हंगामा देखने को मिला जिसके बाद झारखंड से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने जीडीपी के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया.

उन्होंने कहा कि देश के विकास को मापने का पैमाना जीडीपी 1934 में आया और इससे पहले ऐसा कोई पैमाना नहीं हुआ करता था. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जीडीपी को बाइबल, रामायण या महाभारत मान लेना सत्य नहीं है.

निशिकांत ने इसके साथ ही कहा कि भविष्य में जीडीपी का कोई बहुत ज़्यादा उपयोग नहीं होगा.

बीजेपी सांसद ने कहा कि जीडीपी की जगह यह जानना ज़रूरी है कि आम लोगों का सतत आर्थिक विकास हो रहा है या नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि

शुक्रवार को जीडीपी के आए तिमाही नतीजे बेहद चौंकाने वाले थे. ऐसा आशंकाएं थीं कि देश की जीडीपी ग्रोथ काफ़ी नीचे जा सकती है आख़िरकार जो सच साबित हुई.

जीडीपी वृद्धि की दर गिरकर 4.5 फ़ीसदी पर आ गई. कुछ ही समय पहले समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अर्थशास्त्रियों का सर्वेक्षण किया था जिसमें ये दर गिरकर पांच परसेंट से नीचे आने की आशंका जताई गई थी. लेकिन उन्होंने भी आंकड़ा 4.7 परसेंट तक ही रहने की आशंका जताई थी.

यह पिछले छह साल में सबसे ख़राब आंकड़ा है, इससे पहले 2013 में जनवरी से मार्च के बीच ये दर 4.3 फ़ीसदी थी.

चिंता की बात ये है कि ये लगातार छठी तिमाही है जब जीडीपी के बढ़ने की दर में गिरावट आई है. सबसे चिंताजनक ख़बर ये है कि इंडस्ट्री की ग्रोथ रेट 6.7% से गिरकर सिर्फ़ आधा परसेंट रह गई है.

इसमें भी मैन्युफ़ैक्चरिंग यानी कारख़ानों में बनने वाले सामान में बढ़ोत्तरी की जगह आधे परसेंचट की गिरावट दर्ज हुई है. उधर खेतीबाड़ी या कृषि क्षेत्र में बढ़ोत्तरी की दर 4.9 से गिरकर 2.1% और सर्विसेज़ की दर भी 7.3% से गिरकर 6.8 ही रह गई है.

ख़बरों से लेकर आम आदमी के बीच अक्सर एक शब्द ख़ूब चर्चा में होता है और वो है जीडीपी. पर जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) यानी सकल घरेलू उत्पाद है क्या बला?

जीडीपी किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे ज़रूरी पैमाना है. जीडीपी किसी ख़ास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल क़ीमत है. भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही आधार पर होती है. ध्यान देने वाली बात ये है कि ये उत्पादन या सेवाएं देश के भीतर ही होनी चाहिए.

भारत में कृषि, उद्योग और सर्विसेज़ यानी सेवा तीन प्रमुख घटक हैं जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर होती है.

ये आंकड़ा देश की आर्थिक तरक्की का संकेत देता है. आसान शब्दों में, अगर जीडीपी का आंकड़ा बढ़ा है तो आर्थिक विकास दर बढ़ी है और अगर ये पिछले तिमाही के मुक़ाबले कम है तो देश की माली हालत में गिरावट का रुख़ है.

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